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Wednesday, August 24, 2011

रेहान का मिस्‍टर डिपेंडेबल



फना फिल्म में आतंकी बने आमिर खान और उनके बेटे रेहान के बीच एक छोटा लेकिन बड़ा ही रोचक संवाद है। आतंकी पिता और उसके मासूम बेटे के बीच यह संवाद राहुल द्रविड़ को लेकर है। आतंकी पिता कहते है, 'वह राहुल द्रविड़ की तरह क्रिकेट नहीं खेल सकते है। डिपेंडेबल नहीं है और राहुल द्रविड़ की तरह उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।'  पिता पुत्र के बीच यह कुछ पलों का संवाद है। रेहान को अपने राहुल द्रविड़ पर अटूट विश्वास है। रील लाइफ के रेहान से लेकर रियल लाइफ के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की नजर में इस भरोसे को एक बार फिर कायम रखा है। द्रविड़ ने इंग्लैंड सीरीज में जता दिया कि क्‍यो उन्‍हें मिस्टर डिपेंडेबल कहां जाता है।


आमिर खान तरह राहुल द्रविड़ को मिस्‍टर डिपेंडेबल के साथ मिस्‍टर परफेक्‍ट कहां जाता है। उन्‍हें यह दर्जा शास्‍त्रीय शैली की क्रिकेट खेलने की वजह से हासिल हुआ है। हालांकि वह आमिर खान की तरह खुशकिस्‍मत नहीं है कि जो अपनी स्क्रिप्‍ट से लेकर सह कलाकार और निर्देशक तक चुनने के लिए स्‍वतंत्र है। द्रविड़ के हाथों में न तो विकेट का मिजाज है और नहीं विपक्षी गेंदबाजों के तीखे तेवरों को नियंत्रित करने का हथियार। मौसम के बदलते रूख से भी उन्‍हें दो चार होना पड़ता है। इसके बावजूद वह भरोसेमंद बने हुए है। इंग्लैंड सीरीज में एक नहीं कई बार द्रविड़ ने इस बात को साबित किया है। टीम की नैया हर बार मझधार में फंसी रही। ऐसे आड़े वक्‍त में द्रविड़ विकेट पर अंगद के पांव की तरह जम गए। सचिन, लक्ष्‍मण और रैना के मझधार में साथ छोड़ने के बाद भी उनका धैर्य नहीं डगमाया। एकला चलो रे की तर्ज पर वह मोर्चे पर डटे रहे।


राहुल द्रविड़ की फितरत ही ऐसी है कि उनके लिए बल्‍ले से निकलने वाले रन और टीम की जीत के अलावा कोई बात मायने नहीं रखती। द वॉल को न तो इस बात की कोई शिकन है कि भारतीय टीम की बल्‍लेबाजी का बोझा वह साल दर साल ढो रहे है और ना हीं इस जवाबदारी को लेकर किसी तरह का कोई घमंड। वह उस सैनिक की तरह है जो एक मोर्चा फतह करने के बाद अगला मोर्चा फतह करने के लिए निकल पड़ता है।


भारतीय टीम के फेब फोर में लक्ष्‍मण के बाद द्रविड़ ही ऐसे खिलाड़ी है जिन्‍हें वह श्रेय नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार रहे है। भारतीय टीम के जीत की बुलंदियों से छूने के सफर में वह हमेशा नींव का पत्‍थर बने रहे। इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज शुरू होने के पहले द्रविड़ का जिक्र भी नहीं हो रहा था। हर किसी की जुबां पर केवल और केवल क्रिकेट के 'भगवान' के शतकों के शतक का जिक्र था। टेस्ट दर टेस्ट सचिन का इंतजार बढ़ता गया, लेकिन दीवार आड़े वक्त मजबूती के साथ खड़ी रहीं।  सीरीज खत्म होने के बाद द्रविड़ के खाते में तीन शतक है और दुनिया की सबसे मजबूत बल्लेबाजी क्रम का कोई भी बल्लेबाज उनके नजदीक भी नहीं हैं।


द्रविड़ हर मुश्किल घड़ी में टीम इंडिया के काम आए, लेकिन वह अनसंग हीरो के तरह ही रहे।। आस्‍ट्रेलिया के खिलाफ ईडन गार्डन में वीवीएस लक्ष्‍मण की 281 रनों की पारी का जिक्र होता है लेकिन विकेट की दूसरी ओर जमे रहकर 180 रनों की पारी खेलने वाले द्रविड़ को याद नहीं किया जाता। सचिन के शतक और गांगुली की कप्‍तानी में आस्‍ट्रेलिया में मिली टेस्‍ट जीत का समय समय पर जिक्र होता है लेकिन ऐडिलेड में उनकी मैच विनिंग पारी का भूले से भी जिक्र नहीं होता।


कुल जमा राहुल द्रविड़ का व्‍यक्तित्‍व टीवी पर दिखाए जाने वाले एक सीमेंट कंपनी के विज्ञापन की तरह है। यह विज्ञापन संदेश देता है कि एक खास किस्‍म के सीमेंट से बनी दीवार टूटेगी नहीं। भारतीय टीम की यह दीवार भी करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की उम्‍मीदों पर यूं ही मजबूती से हर मोर्चे पर खडी है। विपक्षी गेंदबाजों के हर थपेड़े को झेलने के बाद द वॉल का आवरण चमकदार और विश्वसनीय बना हुआ है।

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