Pages

Monday, October 11, 2010

सचिन, सचिन, सचिन....





16 नवंबर, 2007 ग्‍वालियर वन डे। पाकिस्‍तान के खिलाफ सचिन तेंडुलकर 97 रन बनाकर क्रीज पर थे। स्‍टेडियम में मौजूद हजारों दर्शक ही नहीं देश भर में सचिन के करोड़ों चाहने वाले उनका शतक पूरा होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उमर गुल की एक गेंद पर सचिन चूक गए। पाकिस्‍तान के खिलाफ यह लगातार दूसरा मौका और 2007 के सीजन में ऐसा छठी बार हो रहा था जब सचिन नर्वस नाईंटीज का शिकार हुए थे। उस वक्‍त सचिन के सात साल के बेटे अर्जुन ने पापा को सलाह दी थी कि वह 94 रन बनाने के बाद छक्‍का लगाकर क्‍यों नहीं अपना शतक पूरा कर लेते।


लगभग तीन साल बाद मोहाली में सचिन दो रन से 49 वां शतक बनाने से चूक गए थे। बेंगलुरू में ऐसा न हो इसके लिए सचिन ने 94 के स्‍कोर तक पहुंचने के पहले भी छक्‍का जमाया और शतक भी छक्‍का जमाकर पूरा किया। दरअसल, सचिन का कैरियर हर वक्‍त कुछ नया सीखने की ललक के साथ आगे बढा है। सचिन के लिए कभी यह महत्‍वपूर्ण नहीं रहा कि सलाह देने वाला कौन है।  दिमागी चतुराई औऱ दमखम के  इस खेल में सचिन के लिए हर सलाह और सबक ही महत्‍वपूर्ण रहा है। फिर चाहे यह अपने नन्हे बेटे से ही क्‍यों न मिली हो।


मुंबईकर के लिए लोकल, दिल्‍ली वालों के लिए मेट्रो और इंदौरवासियों के लिए सिटी बस को लाइफ लाइन माना जाता है। इनमें सफर कर इन शहरों की धडकन को आसानी से महसूस किया जा सकता है। सचिन ऐसे ही एक अरब बीस करोड लोगों के दिलों की धडकन है। हर शतक के बाद उनका वो हेलमेट निकालना...कुछ पलों के लिए आसमां की ओर देखना। फिर हेलमेट और बल्‍ला उपर कर दर्शकों का अभिवादन करना और फिर हेलमेट पर लगे राष्‍ट्रीय ध्‍वज को चूमना। सचिन की सफलता को व्‍यक्तिगत सफलता मानना और उनकी असफलता पर दुखी होना। 21 सालों से देश को सचिन की आदत सी हो गई है।

सचिन के शतक के देश के लिए क्‍या मायने है इसके लिए आस्‍ट्रेलियाई क्रिकेट लेखक पीटर रिबोक के अनुभव से बेहतर कोई और बात नहीं हो सकती। पीटर एक बार शिमला से दिल्‍ली लौट रहे थे। किसी स्‍टेशन पर ट्रेन रूकी हुई थी। सचिन शतक के करीब थे और 98 रनों पर बल्‍लेबाजी कर रहे थे। ट्रेन के यात्री, रेलवे अधिकारी और ट्रेन में मौजूद हर कोई इंतजार कर रहा था कि सचिन अपना शतक पूरा करे। यह जीनियस बल्‍लेबाज भारत में समय को भी रोक सकता है।


पिछले दो दशक से बल्‍ला थामने वाले हर बच्‍चे का ख्‍वाब सचिन तेंदुलकर जैसे ही सफलता अर्जित करना ही रहा है। टीम इंडिया के कप्‍तान एम एस धोनी हो या फिर नजफगढ के सुल्तान वीरेन्‍द्र सहवाग, सभी सचिन के खेल को देखते हुए ही बडे हुए। बेंगलुरू में पहला टेस्‍ट खेल रहे चेतेश्‍वर पुजारा की उम्र तो महज एक साल थी जब सचिन तेंदुलकर ने अन्‍तर्राष्‍ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण किया था। सचिन की खासियत यह रही कि सफलता के नित नए पैमाने बनाने के बावजूद उनके कदम जमीन पर ही रहे। यही वजह है कि केवल क्रिकेटर ही नहीं शटलर साइना नेहवाला, बाक्सिंग के दबंग विजेंदर हो, टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा या फिर पाकिस्‍तान के जाने माने पेनल्‍टी कार्नर विशेषज्ञ सुहैल अब्‍बास, हर कोई सचिन तेंदुलकर को आदर्श का मानता है।

16 नवंबर को सचिन इंटरनेशनल क्रिकेटिंग कैरियर के 21 साल पूरे कर लेंगे। सचिन जिस मुकाम पर है उस तक पहुंचना तो दूर की बात है, उसके बारे में सोचना भी किसी क्रिकेटर के लिए एक बडे पराक्रम से कम नहीं होगा। सचिन ने जब टेस्‍ट क्रिकेट शुरू किया था, लगभग उसी वक्‍त देश में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ था। देश ने पिछले 21 सालों में इस दौर के अच्छे और बुरे दोनों अनुभव देखे हैं। सचिन ने इन 21 सालों मे क्रिकेट की एकमेव सत्ता अपने हाथों में रखी है। देश ने वह दौर भी देखा है जब इंडिया का मतलब इंदिरा और इंदिरा का मतलब इंडिया माना जाता है राजनीति की भाषा में कहें तो आज क्रिकेट का मतलब सचिन हो गया है।

4 comments:

anup kumar dubey said...

sachin k bare main jitna bhi likha jay kam hi hain apne bhi kosis ki hai, lekin aaj apke lekh main wo gahrai nahi dikhi jo hamisa hoti hai. sachin khas hain na kebal india k liye lekin michal somachar jaise world k number one racer k liy bhi tabhi to somachar ne unhe gift main farari dee thi. lekh main kuch alg nahi laga jaise unki niji gindgi ki agar ek jhhal milti lekh main to kaphi achha hota

sunil said...

मनोज'जी,
मैं अनूपजी से सहमत नहीं हूं.. आपकी भाषा का प्रवाह और दिए गए उद्धरण इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं कि you are a player by heart. अच्छा लगा कि आप खेलों तक ही सीमित रहे..
किसी के निजी जीवन से ज्यादा संस्मरण उठाना आपको व्यक्ति पूजक या निंदक की श्रेणी की ओर धकेल देता है..
लेकिन शुरू में आपने सचिन की खामियों का ज़िक्र कर ये बता दिया कि आप उनके अंदर के खिलाड़ी का सम्मान करते हैं.. आपने सचिन के निजी जीवन को केवल छुआ भर है..
इससे ज्यादा निजी संस्मरणों के ज़िक्र न कर आपने उस अदृश्य लक्ष्मण रेखा का सम्मान किया है.. जो आपसे अपेक्षित है.. आपके लेखन में एक प्रवाह है.. जो मुझे किसी की याद दिलाता है..

शेष फिर कभी..

सादर,

सुनील।
bsunil1@gmail.com

Manoj Khandekar said...

सुनीलजी और अनूप आप दोनों के बेशकीमती सुझाव और हौंसला अफजाई के लिए शुक्रिया।

Manoj Khandekar said...

पिता मास्टर, बेटा गुरू

Post a Comment