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Sunday, October 3, 2010

ओ यारो इंडिया बुला लिया



10 मर्इ 2010। राजधानी भोपाल में गरमी पूरे शबाब पर थी। पारा किसी तरह के समझौते के मूड में नहीं था। दोपहर बहुत सुस्त रफ्तार से शाम की ओर कदम बढ़ा रही थी। सवा चार बजे होंगे, जब एक फोन कॅाल ने खबरों की दुनिया में तेजी ला दी। कॅामनवेल्थ खेलों की बैटन के मध्यप्रदेश में आने के कार्यक्रम की घोषणा हो रही थी। खबर को ब्रेक करने के आधे घंटे के भीतर उसे फाइल भी कर दिया। सहयोगी रिपोर्टर विजय का दबाव था, जिसकी वजह से सारा काम जल्द खत्म हो गया। दबाव चाय पीने का था। इस दबाव के आगे झुकना यानि पारे से सीधे सीधे पंगा लेना था।


विरोध काम नहीं आया। चाय पीने के लिए दफ्तर से बाहर निकलना पडा। चाय की चुस्कियों के बीच विजय ने ही सबसे पहले बैटन थामने की चर्चा छेड़ी। यह ख्याल रोमांचित कर देने वाला था। अभी तक बैटन का जिक्र आते ही सबसे पहले दूरदर्शन की २२ साल पुरानी डाक्यूमेंट्री टॉर्च ऑफ फ्रीडम की तस्वीर ही नज़र आती है। मिले सुर मेरा तुम्हारा के दौर में बनी इस डाक्यूमेंट्री में देश की नामी खिलाडियों को मशाल थामे दिखाया गया था। हिरनों के बीच कुलांचे भरती पीटी उषा या फिर तेज बारिश में मशाल लेकर दौड़ते सुनील गावस्कर। नवाब पटौदी के साथ नन्हीं सोहा अली तो दीपिका पादुकोण के पिता और बैंडमिंटन के सितारा खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण भी  नज़र आते हैं।




बहरहाल, यह ख्याल जितनी तेजी से आया, खबरों की दौड़भाग में उतनी ही तेजी से पीछे भी छूट गया। इसी दौरान राजधानी से नाता टूटा और मुकाम एक बार फिर मध्यप्रदेश की खेल राजधानी इंदौर में जमा लिया। भोपाल में खेल मैदान के जितना करीब रहा, इंदौर में उतनी ही दूरी होती गर्इ। इन सबके बीच बैटन के मध्यप्रदेश में आमद देने की घड़ी नज़दीक आ पहुंची। बैटन के मध्यप्रदेश पहुंचने के दो दिन पहले पता चला कि बैटन थामने वालों की सूची में मेरा नाम भी शामिल है। यह दो दिन बड़े इत्तफाक लिए हुए रहे। बगैर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अचानक कवरेज के लिए रतलाम जाने का आदेश हुआ। मौका भी ख़ास था, क्वींस बैटन मध्यप्रदेश की सीमा में प्रवेश करने रही थी। बारिश की बूंदों और धूप की अठखेलियों की इन्द्रधनुषी छटां के बीच १५ सितंबर कि शाम को क्वींस बैटन मध्यप्रदेश पहुंची। इस ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी बना, लेकिन बैटन थामने का मौका अभी नहीं आया था।




आखिरकार, ख़बर ब्रेक करने के 128 दिनों बाद बैटन को थामने का पल आया। 70 देशों, लगभग एक लाख 85 हजार किलोमीटर का सफर तय कर यह बैटन मेरे हाथों में आर्इ थी। बैटन, जिसे राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने ओलंपिक गोल्ड मेडल अभिनव बिन्द्रा को सौपा था। एक अरब से ज्यादा की आबादी वाले इस मुल्क में केवल पांच हज़ार चुनिंदा लोगों को बैटन थामने के लिए चुना गया था। उस बैटन को थामकर इंदौर की सड़कों पर दौड़ना किसी ख्वाब के सच होने जैसा बिलकुल नहीं है, क्योंकि यह कल्पनाशीलता से परे था।



खेल को छोड़ने के नौ साल और मध्यप्रदेश के सर्वोच्च खेल सम्मान विक्रम अवार्ड मिलने के आठ साल बाद सात समंदर पार से आर्इ बैटन को थामने का मौका मिला था। बकायदा इसके लिए तीन बजकर चालीस मिनिट का समय मुकर्रर हुआ था। अपने निर्धारित समय के एक घंटे पहले ही बैटन इंदौर पहुंच गर्इ। इस खास इवेंट को कवर कर रहे मेरे दो बेहद अज़ीज़ मित्र राहुल और समीर यदि समय पर इसकी सूचना नहीं देते तो बैटन छूटना तय थी। किसी तरह दौड़ते भागते बैटन को थाम ही लिया। उम्मीद है कि इसी तरह दौड़ते भागते ही सही हम कॅामनवेल्थ खेलों की सारी तैयारियों को अंतिम समय तक पूरा करते हुए इस एक सफल आयोजन बनाएंगे। आमीन।

3 comments:

nidhi said...

आपको बहुत बधाई... इंदौर के लिये भी यह एक अविस्मरणीय क्षण था.....कॅामनवेल्थ भी इसी तरह भारत के लिये गौरवशाली और सफ़ल आयोजन होगा...

श्रुति अग्रवाल said...

बहुत खूब, मुबारक हो....बेटन पकड़कर कितना गर्व महसूस हुआ होगा ना...ऐसे पलों को शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

Unknown said...

Nice to c u still fit n fine.

Amit Kothekar

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