कोल्हापुर, कर्नाटक की सीमा से सटा महाराष्ट्र एक शहर। ठेठ मराठी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला यह शहर किसी पहचान का मोहताज नहीं है। कोल्हापुर पर देवी महालक्ष्मी और विष्णु भगवान की कृपा मानी जाती है तो कहां यह भी जाता है देश में प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा मर्सिडीज कार इसी शहर में है। चटपटा मांसाहारी भोजन हो या फिर खास तरीके से तैयार की गई चप्पल, कोल्हापुर शहर से जुड़ी खासियतों की फेहरिस्त काफी लंबी है। देश के सबसे समृद्ध शहरों में शुमार इस शहर की पहचान में अब वर्ल्ड चैंपियन का ताज भी जुड गया है। विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला निशानेबाज तेजस्विनी सांवत भी इसी शहर की नुमाइंदगी करती है।
कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार और महिला खिलाडि़यों के यौन उत्पीड़न की वजह से देश में खेल और खिलाड़ी गलत वज़हों से सुर्खियों में बने हुए है। ऐसे में तेजस्विनी की कामयाबी ने खिलाडि़यों के मुरझाए चेहरों पर खुशियां लौटा दी है। इसके साथ ही तेजस्विनी मिसाल बन गई है कि किस तरह साधनों का अभाव और पारिवारिक दिक्कतों का मुकाबला कर भी दुनिया फतह की जा सकती है। तेजस्विनी न तो किसी समृद्ध परिवार से है और नही सफलता का रास्ता उसके लिए आसान रहा है। इसके बावजूद इस कोल्हापुरी बाला ने वह कारनामा कर दिखाया है जो अब तक कोई भी भारतीय महिला निशानेबाज नहीं कर पाई।
तेजस्विनी के शहर कोल्हापुर को सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की वजह से कलापुर भी कहां जाता है। भारत की पहली फिल्म राजा हरीशचन्द्र की परिकल्पना यही रची गई थी। रील लाइफ का आगाज जहां हुआ वही कि तेजस्विनी की रियल लाइफ की कहानी भी फिल्मों की तरह उतार चढ़ाव भरी रही। फिल्म की किसी नायिका की तरह तेजस्विनी ने सफलता का स्वाद चखने के पहले वक्त के कई थपेड़े झेले है। कर्ज पर रायफल लेकर उन्होंने अभ्यास किया तो जब सफलता का वक्त आया तो 1971 की लड़ाई में भारतीय नेवी के हिस्सा रहे पिता रवीन्द्र सांवत नहीं रहे। हालात ने हर बार तेजस्विनी को तोड़ने की कोशिश की लेकिन बजाए शिकवे शिकायत करने के तेजस्विनी फिल्म की जाबांज पुलिस अधिकारी की तरह इस निशानेबाज ने हर चुनौती को करारा जवाब दिया।
तेजस्विनी के शहर यानि खेलों की राजधानी भी। खासतौर पर यहां कुश्ती और भारतीय खेलों को लेकर खासा क्रेज रहता है। ऐसे शहर में निशानेबाजी जैसे खेल को चुनना और फिर शीर्ष तक पहुंचना कड़ी तपस्या के बगैर संभव नहीं है। तीन बहनों में सबसे बड़ी तेजस्विनी को जिंदगी ने कई बार ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया जहां निशानेबाजी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प उन्हें नजर नहीं आ रहा था। 13 साल की उम्र में एनसीसी शिविर से निशानेबाजी शुरू करने वाली तेजस्विनी को शूटिंग रेंज के साथ साथ जिंदगी से भी कदम कदम पर संघर्ष करना पडा़। सुर्खियों और ग्लैमर से दूर दोनों मोर्चों पर गुमनाम रह कर तेजस्विनी संघर्ष करती रही और आज दुनिया उनकी सफलता की चमक देख रही है।
दरअसल तेजस्विनी की मां सुनीता क्रिकेट की खिलाड़ी रही है। इसलिए वह अच्छे से जानती है कि मुसीबत के छक्के छुडाने के पहले उसकी चुनौती का सामना संयम से किया जाता है। मां से मिली सीख और कभी न हार मानने के जज्बे ने तेजस्विनी को भी मजबूत बना दिया। पिता की मौत का गम हो या फिर आर्थिक दिक्कतें तेजस्विनी ने कई बार खेल से तौबा करने का मन बना लिया। ऐसे मुश्किल वक्त में सुनीता मजबूती से खड़ी रही। तेजस्विनी की सफलता की और बढ़ाए हर कदम पर मां का साया साथ नजर आएगा। अब जब तेजस्विनी वर्ल्ड चैपिंयनशिप जीत गई तो वह गर्व से कह सकती है कि उसके पास मां है।
देश में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिए जाने की मांग हो रही है। पुरूषों के समान उन्हें अधिकार देने की बात कही जा रही है। इन सारे राजीनितिक झमेले के बीच सायना नेहवाल, तेजस्विनी सांवत जैसी खिलाडी है जिन्होंने अपने बलबूते पर सारी मुश्किलों को दूर कर सफलता हासिल की है। उन्हें न तो विरासत में कुछ मिला और नहीं शार्ट कट से वह दुनिया के मंच पर सबसे उपर खड़ी है। वे मिसाल बन रही है उभरते भारत की जो दुनिया को बता रही है कि हम किसी से कम नहीं।
8 comments:
अच्छा लेख
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थैक्स नवीन। जरूरी बदलाव कर दिए गए है।
दादा.... बढ़िया लिखा है.... सारा दिन इतने बिज़ी होते हुए भी आप इतना अच्छा लिख लेते हो.... बधाई......
Thanks for posting this "Inspiring article"....
badia likha hai....let pada, par padkar laga ki jaldi padana tha.
Thanks for such a wonderful information about emrging star.
आप सभी का हौंसला अफजाई के लिए धन्यवाद।
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