लग गई ना मिर्ची, अमिताभ बच्चन इन दिनों इसी टैग लाईन का प्रयोग चैंपियंस लीग टी20 के प्रमोशन के लिए कर रहे है। अमिताभ बच्चन ऐसे ही एक प्रमोशन में हर्शल गिब्स पर फायनल में हारने के लिए कटाक्ष करते है। बिग बी का यह कटाक्ष टीम इंडिया पर बिलकुल सटीक बैठता है कि यूं तो आपकी टीम तोप है लेकिन फायनल में हमेशा लुढ़क जाती है। श्रीलंका में एमएस धोनी की टीम इंडिया एक बार फिर अहम मुकाबले में चारों खाने चित हो गई। यह हार इसलिए भी ज्यादा दुखदाई है कि यह पूरी टीम की विफलता है। श्रीलंका में गेंदबाजी से लेकर बल्लेबाजी तक सारी कमजोरियां एक साथ खुलकर सामने आ गई।
हार जीत खेल का हिस्सा है लेकिन भारतीय टीम की हार दिल तोड़ देने वाली है। धोनी बिग्रेड ने श्रीलंका में मुकाबला करने के बजाए आत्मसमर्पण कर दिया। टीम इंडिया की यह हार जंग का ऐलान कर मैदान ए जंग में घुटने टेककर युद्धबंदी बनने जैसी है। मैदान में खिलाडि़यों में जीत के जज्बे और दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव साफतौर पर झलक रहा था। श्रीलंका में त्रिकोणीय श्रृंखला युवा खिलाडि़यों को वर्ल्ड कप के पहले खुद को साबित करने का एक अच्छा प्लेटफार्म था। श्रृंखला के बाद भी युवा खिलाडी इसी प्लेटफार्म पर है और वह सफलता की ट्रेन पर सवार होने का मौका गंवा चूके है।

आईपीएल में केकेआर कोलकाता नाइट राइडर्स का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। टीम इंडिया के केकेआर यानि कोहली, कार्तिक और रोहित शर्मा भी नाकाम साबित हुए। मुंबई, दिल्ली और चेन्नई देश के तीन सबसे बड़े महानगरों की नुमाइंदगी करने वाले इन तीन युवा खिलाडि़यों को भरपूर मौके मिल रहे है। तीनों को भविष्य का आधारस्तंभ माना जा रहा है। भविष्य का तो पता नहीं लेकिन अभी तो इन तीनों के किले में विपक्षी गेंदबाज आसानी से सेंधमारी कर रहे है। क्रिकेटिंग दुनिया की चकाचौंध ने शायद इनके खेल की चमक फीकी कर दी है और वह अपनी प्रतिभा के साथ न्याय करते नजर नहीं आ रहे है।
युवराज सिंह का राज अब क्रिकेट जगत से खत्म होता दिख रहा है। युवराज सिंह का चोटों से जुझना और मैदान पर असफलता का दौर जारी है। कप्तान के आशीर्वाद उन्हें मिला हुआ है और वन डे टीम में अब भी वह जगह बनाए हुए है। टेस्ट टीम से सौरव गांगुली की विदाई युवराज प्रेम की वजह से हुई थी। गांगुली भी अब टेस्ट टीम में नहीं है और युवराज भी टेस्ट टीम में वापसी के लिए संघर्ष कर रहे है। वन डे में पिछले एक साल से उनका बल्ला लगभग खामोश है। अब वक्त आ गया है कि युवराज को लेकर कड़ा फैसला लेने का।
बल्लेबाज तो बल्लेबाज गेंदबाजों ने भी टीम को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। ईशांत शर्मा की असफलता का दौर जारी है। आईपीएल में उनकी गेंदों पर सबसे ज्यादा चौके जड़े गए थे। इसके बावजूद वह सुधरने का नाम नहीं ले रहे है। आशीष नेहरा, मुनफ पटेल और प्रवीण कुमार भी टुकड़े टुकड़े में अच्छा प्रदर्शन कर रहे है। स्पिन गेंदबाजी में तो कोई भी गेंदबाज विपक्षी टीम के लिए खतरा बनता ही नहीं दिख रहा है। इसके चलते पार्ट टाइम स्पिनरों से भरोसे ही काम चलाया जा रहा है। यह प्रयोग हर बार सफल साबित नहीं होता है और समय समय पर टीम इसका खामियाज भुगत भी रही है।
2007 से भारतीय टीम में युवा खून को मौका दिए जाने की पैरवी की जाती रही है। धोनी युग में टीम के कई वरिष्ठ खिलाडि़यों की छुट्टी हुई और युवाओं को बंपर मौके मिलते रहे है। टी20 वर्ल्ड कप के पहले संस्करण को छोड़ दे तो इन युवाओं ने निराश ही ज्यादा किया है। श्रीलंका में भी सचिन तेंदुलकर की गैरमौजूदगी में वीरेंद्र सहवाग ही टीम के सबसे बुजुर्ग खिलाड़ी थे। यदि सहवाग नहीं होते तो टीम फायनल में भी नहीं होती।
आखिर में बात आर अश्विन और सौरभ तिवारी की। कप्तान का इन दोनों खिलाडि़यों को मौका न दिया जाना समझ से परे है। टीम को एक पिंच हीटर की सख्त जरूरत थी और सौरभ तिवारी उस जगह पर फिट बैठते है। आर अश्विन को लेकर एमएस की बेरूखी ज्याद चौंकाने वाली है। आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स के लिए यही अश्चिन धोनी के सबसे मारक हथियार थे। धोनी तमिलनाडू के इस उच्चे कद के ऑफ स्पिनर को मुरलीधरन से ज्यादा तवज्जों देते थे। अश्चिन को एक भी मुकाबले में मौका न देना धोनी की रणनीतिक कमजोरी को उजागर करता है। जडेजा की असफलता का अन्तहीन सिलसिला खत्म नहीं हो रहा है। इसके बावजूद उन पर धोनी की विशेष कृपा समझ से परे है। वर्ल्ड कप दूर नहीं है और उपमहाद्वीप की पिचो पर यह प्रदर्शन और रणनीतिक चूक खतरे की घंटी है।
2 comments:
मनोज भाई...क्या यह वही अमिताभ जी है जो पैसों के लिए (माफ किजिएगा...मेरा मतलब ब्रांड के लिए) ठंडा ठंडा कूल और कुछ मीठा जाए जैसे जुमले कसत हैं। अगर हां ! तो फिर ठीक है...क्योंकि लग गई मिर्ची अमिताभ जी ही कह सकते हैं।
मनोज भाई ,
बहुत सही लिखा आपने .खेलो के कुंभ कामनवेल्थ पर भी आपके इस ब्लॉग के माध्यम से विचार जानना चाहूँगा ,क्या भारत जैसे गरीब देश में इस तरह के आयोजनो में हजारो करोड़ रुपये (80000 करोड) रुपये खर्च करना क्या सही है
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