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Sunday, August 8, 2010

ये कौन चित्रकार है

वेंगीपुराप्‍पु वेंकटा साई लक्ष्‍मण अंग्रेजी वर्णमाला के 27 अक्षरों को प्रयोग कर यह नाम बना है। यह नाम जितना स्‍पेशल और लंबा है उतना ही स्‍पेशल और उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्‍त वाला वह शख्‍स है जिसे इस नाम से जाना जाता है। क्रिकेट प्रेमी उसे बजाए इस नाम के वीवीएस लक्ष्‍मण यानि की वेरी वेरी स्‍पेशल लक्ष्‍मण के नाम से पहचानते है। लक्ष्‍मण एक बार फिर टीम इंडिया के लिए वेरी वेरी स्‍पेशल साबित हुए है। विपरीत परिस्थितियों में जमाए उनके शतक की बदौलत धोनी की सेना लंका की धरती पर शिकस्‍त खाने से बच गई।

वीवीएस लक्ष्‍मण को यूं तो हमेशा 281 रनों की पारी के लिए याद किया जाता है। कोलकाता में आस्‍ट्रेलिया के खिलाफ फॉलोआन खेलते हुए लक्ष्‍मण ने यह पारी खेली थी। यह पारी अब तक किसी भी भारतीय बल्‍लेबाज द्वारा खेली गई सबसे बेहतरीन पारी मानी जाती है। हालांकि लक्ष्‍मण ने कई बार ऐसी यादगार पारियां खेली है। कोलंबो टेस्‍ट की चौथी पारी में जमाया उनका शतक इसी कड़ी में शुमार होने वाली एक ओर पारी है।

विदेशी धरती पर लक्ष्‍मण ने खूब रन बनाए लेकिन उन्‍हें सबसे ज्‍यादा रास आस्‍ट्रेलियाई गेंदबाज ही आए। आस्‍ट्रेलियाई गेंदबाजों के खिलाफ उन्‍होंने जी भर कर रन बटोरें। इसके बावजूद उनकी क्षमताओं और का‍बिलियत को हमेशा कम करके आंका गया। दरअसल वह जिस दौर में भारतीय टीम का हिस्‍सा बने वह दौर सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड का दौर रहा। इसके बाद सौरव गांगुली और फिर एम एस धोनी की लोकप्रियता की वजह से यह स्टाइलिश बल्‍लेबाज वह सम्‍मान नहीं पा सका जिसका वह हकदार है। उन्‍हें हर बार अपनी काबिलियत साबित करनी पड़ी। टीम इंडिया को नंबर एक का ताज दिलाने में उनका भी अहम योगदान रहा लेकिन वह टीम में अनसंग हीरो की तरह ही रहे।


एक पर एक फ्री की तरह भारतीय टीम में शामिल होने के साथ ही एक अरब लोगों की उम्‍मीदों का बोझ भी फ्री में आप के कंधों पर आ जाता है। ऐसे में यदि सचिन, द्रविड और सहवाग जैसे दिग्‍गज पैवेलियन लौट जाए तो विरोधी टीम के गेंदबाज गेंद की बजाए तोप से गोले बरसाते नजर आते है। लक्ष्‍मण ऐसे हालात में विपक्षी टीम के सामने अंगद के पांव की तरह जम जाते है। जैसे आंच में तपकर सोना कुंदन बनता है वैसे ही दबाव की तपिश में लक्ष्‍मण को खेल निखरता है। विरोधी टीम जितना हावी होती है उतना ही लक्ष्‍मण का खेल परवान चढ़ता जाता है। लक्ष्‍मण को भी मानो बहाव के विपरीत कश्‍ती चलाने में ही ज्‍यादा मजा आता है।


वीवीएस लक्ष्‍मण की कलात्‍मक बल्‍लेबाजी को देखना अपने आप में एक यादगार अनुभव है। कोई चित्रकार जैसे किसी तस्‍वीर को बनाता है उसी तरह वीवीएस की पारी संजी संवरी रहती है। वह जब बल्‍लेबाजी करते है तो बल्‍ला चित्रकार की कूची और मैदान कैनवास सा नजर आता है। चित्रकार जैसे कही बेहद हल्के स्‍ट्रोक्‍स का इस्‍तेमाल अपनी कलाकृति में करता है कुछ उसी तरह लक्ष्‍मण का बल्‍ला स्पिन गेंदबाज के खिलाफ करीने से लेट कट या ऑन ड्राईव लगाता नजर आता है। चित्रकार कही तीखे चटक रंग के इस्‍तेमाल से कलाकृति को चार चांद लगाता है तो उसी तरह तेज गेंदबाजों के खिलाफ बेधड़क जमाए लक्ष्‍मण के पुल शॉटस उनकी बल्‍लेबाजी को नयी उंचाईयों पर ले जाते है।

तीन साल पहले सौरव गांगुली की विदाई के बाद गोल्‍डन फैब फोर में अगला निशाना वीवीएस लक्ष्‍मण को माना जा रहा था। 2008 में धोनी के नेतृत्‍व में युवाओं को मौका देने की बात जोर पकडने लगी थी। लक्ष्‍मण की जगह युवराज की पैरवी की जा रही थी। लक्ष्‍मण ने विचलित हुए बगैर अपना स्‍वाभाविक खेल जारी रखा। तीन साल बाद भी लक्ष्‍मण टीम के मुख्‍य आधार स्‍तंभ और जीत के शिल्‍पकार बने हुए है। वहीं युवराज 12वें खिलाड़ी है।


वीवीएस लक्ष्‍मण अपने माता पिता की तरह डाक्‍टर बनना चाहते थे। इसके लिए उन्‍होंने डाक्‍टरी की पढाई भी शुरू कर दी। 17 साल की उम्र में लक्ष्‍मण धर्मसंकट में फंस गए थे। उन्‍हें डाक्‍टरी की पढ़ाई या क्रिकेट दोनों में से एक को चुनना था। लक्ष्‍मण ने स्‍टेथस्‍कोप थामने की बजाए बल्‍ला थामने का फैसला लिया। लक्ष्‍मण के शब्‍दों में मैंने बतौर क्रिकेटर खुद को साबित करने के लिए पांच साल की समय सीमा तय की। यदि मैं राष्‍ट्रीय टीम में जगह बनाने में कामयाब नहीं होता तो डाक्‍टर बन जाता। वीवीएस ने जो लक्ष्‍मण रेखा तय की थी उसके खत्‍म होने तक वह दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्‍ट मैच में पदार्पण कर चुके थे। हालांकि यह बात भी उतनी ही सच है कि जितना धैर्य, समर्पण, नज़ाकत और आत्‍मविश्‍वास लक्ष्‍मण में है यदि वह डाक्‍टरी पेशे में भी होते तो वहां भी खूब नाम और सम्‍मान कमाते।

3 comments:

Patali-The-Village said...

v.v.s.laxman ke bare mai jankary dene ke lie dhanywad.

nidhi said...

Good work. Thanks for sharing the greatness of this "Unsung Hero"....

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

सही लिखा है आपने कि लक्ष्मण की क्षमताओं का सही मूल्यांकन कभी नहीं हुआ.
वह वास्तव में वेरी वेरी स्पेशल हैं.
आपने आज उनकी उपलब्धियों को सही से उजागर किया है और चौथे टेस्ट मैच के उनके खेल के बाद तो ऐसे एक आलेख की बड़ी ही आवश्यकता थी.
धन्यवाद.

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