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Monday, April 25, 2011

सचिन की रूहानी मोहब्बत


क्रिकेट एक जुनून है और सचिन उस जुनून का दूसरा नाम ... लेकिन बात यहीं नहीं ठहरती .. सचिन क्रिकेट के जुनूनी प्लेयर से शायद आगे बढ़कर हैं ... क्रिकेट उनकी मोहब्बत है ... सचिन और क्रिकेट की मोहब्बत देख उमराव जान का वह संवाद याद आ जाता है जिसमें कोठे में बैठा एक बुजुर्ग उमराव जान से कहता है 'या तो किसी की हो जाओ या किसी को अपना बना लो।' सचिन तेंडुलकर और क्रिकेट की मोहब्बत का फलसफा भी कुछ ऐसा ही है। सचिन तेंडुलकर क्रिकेट के हो गए।

सत्य साईं बाबा के निधन के बाद बेहद दुखी थे। कयास लगाए जा रहे थे कि सचिन डेक्कन चार्जर्स के खिलाफ मैच में न खेलें लेकिन सचिन का क्रिकेट के प्रति प्यार समर्पण औऱ जुनून ही था जो उन्हें मुकाबले तक खींच लाया। सचिन चाहते तो न खेलने का फैसला कर सकते थे। लेकिन क्रिकेट का भगवान अपने कर्तव्य पथ से कभी अलग नहीं हो सकता। भारी मन से ही सही लेकिन सचिन मैदान में उतरे और अपनी टीम को जीत दिलाई। 

सचिन का ये जुनून, खेल के लिए उनका समर्पण पहले भी देखा गया है। सचिन के पिताजी का 1999 के वर्ल्ड कप के दौरान निधन हो गया। सचिन वर्ल्ड कप के बीच में ही घर आए और पिताजी का अंतिम संस्कार के बाद तुरंत लौट गए। यही नहीं उन्होंने कीनिया के खिलाफ शानदार शतक ठोका औऱ आकाश में भरी नजरों से देखा शायद अपने दिवंगत पिता को यही कहा होगा कि आप देखिए आपका बेटा अपने कर्तव्य पथ पर अडिग है।

सचिन जानते हैं कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं।  इसका मतलब ये नहीं कि वो भावुक नहीं। जिन्हें लगता है कि सचिन भावुक नहीं और केवल जुनूनी व्यक्ति हैं उन्हें याद करना होगा कीनिया के खिलाफ मैच शतक मारने के बाद क्रिकेट के इस दीवाने की आंखे भी नम हो गई थी। मानो वो शतक उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए ही बनाया था। इस बार भी आध्यात्मिक आराध्य सत्य साईं बाबा के निधन के बाद सचिन जब उन्हें श्रृद्धाजलि देने पहुंचे तो आंखों में आंसू उमड़ पड़े। आखिर सचिन भी एक इंसान हैं और इंसान अपनी भावनाओं के आगे हमेशा विवश हो जाता है। सचिन की भावुक भावनाएं भी छलक उठी।

इंसान होने के नाते सचिन भावुक हैं तो क्रिकेटर होने के तौर पर प्रोफेशनल प्लेयर हैं।  क्रिकेट प्रति उनकी यह जीवटता, समर्पण और कभी न हार मारने का जज्बा ही उन्हें दुनिया के बाकी क्रिकेटरों की जमात में काफी आगे रखता है। इतना आगे कि कोई उन तक पहुंच भी नहीं पाता है। सचिन और क्रिकेट एक दूजे के होकर रह गए है। क्रिकेट को धर्म माना जाता है तो सचिन को यूं ही भगवान का दर्जा नहीं दिया गया है। सचिन ने भी जीवन के अहम मौकों पर बता दिया कि दुनिया भले ही उन्हें भगवान कहती हो लेकिन क्रिकेट उनके लिए भी एक धर्म ही है।

क्रिकेट से मोहब्बत और जीवटता के मामले में सचिन के करीब कोई नजर आता है तो वह दिल्ली के विराट कोहली है। साल 2006 में कर्नाटक के खिलाफ रणजी ट्राफी मुकाबले में दिल्ली की टीम मुसीबत में थी। दिल्ली की सारी उम्मीदें विराट कोहली पर टिकी हुई थी जो दिन का खेल खत्म होने पर 40 रनों पर नाबाद थे। विराट अगले दिन बल्लेबाजी शुरू कर पाते इसके पहले ही उनके पिता के निधन की खबर आ जाती है। पिता को अंतिम विदाई देने के पहले विराट फिरोजशाह कोटला पर 90 रनों की पारी खेल अपनी टीम के लिए तारणहार बनते है। किसी भी खेल के लिए जो जूनुन चाहिए वह सचिन या विराट में नजर आता है जो किसी आम इंसान के बस का नहीं है।

खेल हो या मोहब्बत। दुनिया उसी को सलाम करती है जिन्होंने खुद को इसके लिए समर्पित कर दिया।। हीर-रांझा, लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद, रोमियो-जूलियट जैसे प्रेमियों को दुनिया आज भी याद करती है। सचिन और क्रिकेट की मोहब्बत भी बस कुछ ऐसी ही है।

4 comments:

RAVI's said...

aakhri se pahle vale paragraph me palanhar ki jagah taranhar jyada appropriate word hoga...

याज्ञवल्‍क्‍य said...

अच्‍छा लेख हालांकि, सचिन को जितने मौके दिए जा रहे है, उन्‍हे लेकर मेरे मन में ना केवल सवाल है, बल्‍िक उन्‍हे मैं सही भी नही मानता खैर

pooja joshi said...

nice one...

YOGESH said...

Really aapne sachin ko bahoot gahrai se jana hai

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