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Thursday, November 25, 2010

रेहान का मिस्‍टर डिपेंडेबल


फना फिल्‍म में आमिर खान और उनके बेटे रेहान के बीच एक बेह‍द छोटा लेकिन बेहद रोचक संवाद है। यह संवाद राहुल द्रविड को लेकर है। आतंकी बने आमिर अपने बेटे रेहान से बड़े ही मासूमियत भरे अंदाज में कहते है कि वह राहुल द्रविड की तरह क्रिकेट नहीं खेल सकते है। आमिर कहते है डिपेंडेबल नहीं है और राहुल द्रविड की तरह उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। फिल्‍म में पिता पुत्र के बीच यह कुछ पलों का संवाद था। रेहान को अपने राहुल द्रविड़ पर भरोसा है। द्रविड ने रील लाइफ के रेहान और रियल लाइफ के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की नजर में इस भरोसे को एक बार फिर कायम रखा है। राहुल द्रविड ने नागपुर में जता दिया कि क्‍यो उन्‍हें मिस्टर डिपेंडेबल कहां जाता है।

आमिर खान की तरह राहुल द्रविड को मिस्‍टर डिपेंडेबल के साथ मिस्‍टर परफेक्‍ट कहां जाता है। उन्‍हें यह दर्जा शास्‍त्रीय शैली की क्रिकेट खेलने की वजह से हासिल हुआ है। हालांकि वह आमिर खान की तरह खुशकिस्‍मत नहीं है कि जो अपनी स्क्रिप्‍ट से लेकर सह कलाकार और निर्देशक तक चुनने के लिए स्‍वतंत्र है। द्रविड के हाथों में न तो विकेट का मिजाज है और नहीं विपक्षी गेंदबाजों के मिजाज को नियंत्रण करने का हथियार। मौसम के बदलते रूख से भी उन्‍हें दो चार होना पड़ता है। इसके बावजूद वह भरोसेमंद बने हुए है। नागपुर में एक वक्‍त लग रहा था कि भारत एक बार फिर बड़ा स्‍कोर खड़ा करने में नाकाम रहेंगा। ऐसे आड़े वक्‍त में द्रविड विकेट पर अंगद के पांव की तरह जम गए। सचिन, लक्ष्‍मण और रैना के मझधार में साथ छोड़ने के बाद भी उनका धैर्य नहीं डगमाया।

नागपुर राहुल द्रविड का ससुराल होने के साथ साथ संतरों की नगरी भी है। नागपुर पहुंचने के पहले द्रविड का बल्‍लेबाजी फार्म भी संतरों की तरह खट्टा मीठा हो रहा था। तकनीक में कहीं कोई दिक्‍कत नहीं थी। विपक्षी गेंदबाजों की गेंद को समझने में वह गच्‍चा खा रहे थे ऐसा भी कुछ नहीं था। बस वह अच्‍छी शुरूआत को बड़ी पारी में बदल नहीं पा रहे थे। नागपुर में धैर्य, जिद और जज्‍बे के साथ वह मैदान में उतरे और फिर एक बड़ी पारी खेलकर ही लौटे। फार्म में वापसी के लिए इससे बेहतर पारी हो भी नहीं सकती थी।


भारतीय टीम के फेब फोर में लक्ष्‍मण के बाद द्रविड ही ऐसे खिलाड़ी है जिन्‍हें वह श्रेय नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार रहे है। भारतीय टीम के जीत की बुलंदियों से छूने के सफर में वह हमेशा नींव का पत्‍थर बने रहे। 21 नवंबर की शाम को भी जब द्रविड 67 रन बनाकर नाबाद थे तो किसी का ध्‍यान उन पर नहीं था। हर किसी की जुबां पर केवल और केवल सचिन तेंदुलकर के 50 वें शतक की दहलीज पर खड़े होने की चर्चा थी। 22 नवंबर को सचिन दिन की नौ गेंदों के बाद पैवेलियन लौट गए। एक बार फिर लगा कि न्‍यूजीलैंड के आक्रमण के सामने भारत का मध्‍यक्रम लड़खड़ा जाएगा। ऐसी ही मुश्किल घड़ी में द्रविड टीम के तारनहार बनकर सामने आए। द्रविड के जमाए शतक ने केवल भारतीय पारी की नींव को मजबूती नहीं दी बल्कि इसी शतक की बदौलत भारत श्रृंखला फतह करने में भी कामयाब रहा।


द्रविड हर मुश्किल घड़ी में टीम इंडिया के काम आए। आस्‍ट्रेलिया के खिलाफ ईडन गार्डन में वीवीएस लक्ष्‍मण की 281 रनों की पारी का जिक्र होता है लेकिन विकेट की दूसरी ओर जमे रहकर 180 रनों की पारी खेलने वाले द्रविड को याद नहीं किया जाता। सचिन के शतक और गांगुली की कप्‍तानी में आस्‍ट्रेलिया में मिली टेस्‍ट जीत का समय समय पर जिक्र होता है लेकिन ऐडिलेड में उनकी मैच विनिंग पारी का भूले से भी जिक्र नहीं होता।


राहुल द्रविड की फितरत ही ऐसी है कि उनके लिए बल्‍ले से निकलने वाले रन और टीम की जीत के अलावा कोई बात मायने नहीं रखती। द वॉल को न तो इस बात की कोई शिकन है कि भारतीय टीम की बल्‍लेबाजी का बोझा वह साल दर साल ढो रहे है और ना हीं इस जवाबदारी को लेकर किसी तरह का कोई घमंड। वह उस सैनिक की तरह है जो एक मोर्चा फतह करने के बाद अगला मोर्चा फतह करने के लिए निकल पड़ता है।

कुल जमा राहुल द्रविड का व्‍यक्तित्‍व टीवी पर दिखाए जाने वाले एक सीमेंट कंपनी के विज्ञापन की तरह है। यह विज्ञापन संदेश देता है कि एक खास किस्‍म के सीमेंट से बनी दीवार टूटेगी नहीं।भारतीय टीम की यह दीवार भी करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की उम्‍मीदों पर यूं ही मजबूती से हर मोर्चे पर खडी है।  विपक्षी गेंदबाजों के हर थपेड़े को झेलने के बाद द वॉल का आवरण चमकदार और विश्वसनीय बना हुआ है।

Friday, November 19, 2010

अतिथि देवो भव:

भारत सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अतिथि देवो भव: अभियान चला रही है। इसके प्रचार प्रसार का जिम्‍मा आमिर खान के कंधों पर है। बजट भी लाखों करोड़ों रूपयों का है। अब लगता है सरकार को इसके लिए अपना खजाना खाली करने की जरूरत नहीं है। टीम इंडिया के टॉप 11 खिलाड़ी मुफ्त में इसके ब्रांड एम्‍बेसेडर बन सकते है। न्‍यूजीलैंड के खिलाफ पहले दो टेस्‍ट मैचों के बाद तो कम से कम यह माना ही जा सकता है। दुनिया की नंबर वन टीम ने विदेशी मेहमानों की मेहमाननवाजी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पहले अहमदाबाद और फिर हैदराबाद में कीवी टीम के खिलाफ मुकाबले को ससम्‍मान बराबरी पर खत्‍म किया गया।

न्‍यूजीलैंड के खिलाड़ी भारत की सरजमी पर पड़ोसी मुल्‍क बांग्‍लादेश से कड़वी यादें लेकर आए थे। बांग्‍लादेश को क्रिकेट जगत में अपनी धाक अभी जमानी है। इसलिए मेहमान टीम के साथ उसका बर्ताव अच्‍छा नहीं रहा। बल्‍लेबाजों ने कीवी गेंदबाजों का तिरस्‍कार किया तो गेंदबाजों ने अतिथि बल्‍लेबाजों को ज्‍यादा वक्‍त तक क्रीज पर जमे रहने का मौका नहीं दिया। क्रिकेट के सभी फार्मेट में अतिथियों को नीचे दिखाया गया।


बांग्‍लादेश में लूटने पिटने के बाद न्‍यूजीलैंड का पड़ाव भारत में था। बराबरी का मुकाबला तो कतई नहीं कहां जा सकता था। कीवी भी कौन सी शानदार मेहमाननवाजी की उम्‍मीदें लगाकर आए थे। भारत में आने के 20 दिन बाद तस्‍वीर बिलकुल बदली हुई है। उम्‍मीदों के विपरीत कीवी टीम को अब तक के दौरे में अतुल्‍य भारत की तस्‍वीर देखने को मिली है। भारतीय बल्‍लेबाजों ने मेजबान टीम का फर्ज पूरी तरह से अदा किया। उन्‍होंने मेहमान टीम के गेंदबाजों को समय समय पर अपने विकेट उपहार में सौंपे। कभी रन जुटाए भी तो इतने नहीं की मेहमान टीम हार का खतरा महसूस करें।

बल्‍लेबाज जब मेहमाननवाजी में जुटे हो तो गेंदबाज भला कहां पीछे रहने वाले थे। श्रीसंथ, प्रज्ञान ओझा, हरभजन सिंह हर कोई खातिरदारी में जुटा नजर आया। गेंदबाजों ने इतनी दरियादिली दिखाई जितनी तो 2जी स्‍पेक्‍ट्रम घोटाले में संचार मंत्री पद गंवाने वाले ए राजा भी नहीं दिखा पाए। राजा तो राजा कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स आयोजन समिति के अध्‍यक्ष सुरेश कलमाडी भी इस खातिरदारी को देख शर्मसार हो जाए। 



बांग्‍लादेश में न्‍यूजीलैंड ने इतनी मार खाई की वह भूल ही गए थे कि भारत में अतिथि को भगवान का दर्जा दिया जाता है। सदियों से यह परंपरा यहां चली आ रही है। शैलेन्‍द्र ने तो बकायदा शब्‍दों में इसे ढालते हुए लिखा था ‘ मेहमां जो हमारा होता है वो जान से प्‍यारा होता है। यानी जो भी हमारे मुल्‍क आया हमनें उसे खुशी खुशी गले लगा लिया। जिस देश में गंगा बहती है उस देश के क्रिकेटरों से न्‍यूजीलैंड को केवल मेहमानवाजी का नहीं बल्कि समानता का सबक भी सीखने को मिला। वर्ना क्रिकेट की नंबर एक टीम के सामने आठवीं रैंक की टीम की क्‍या बिसात थी। टीम इंडिया ने फिर भी विरोधी टीम को नीचा नहीं दिखने दिया। 

ऊंच नीच, छोटे बड़े का भेद किए बगैर कीवी टीम को बराबरी का दर्जा दिया। पहले टेस्‍ट में लगा कि मेजबान टीम का पलड़ा भारी हो रहा है तो दुनिया के दिग्‍गज बल्‍लेबाजों ने बड़प्‍पन दिखाते हुए आत्‍मसमर्पण कर दिया। हैदराबाद में पांचवे दिन चमत्‍कार की उम्‍मीद जगी तो गेंदबाज कहां पीछे रहने वाले थे। उन्‍होंने मैकुलम को दोहरा शतक जमाने का पूरा मौका दिया।

मेहमानवाजी में थोड़ी चूक होना लाजमी है। हरभजन सिंह जरा ज्‍यादा उत्‍साह में आते दिखें। एक शतक से उनका जी नहीं भरा। आठवे नंबर पर बल्‍लेबाजी करते हुए लगातार दो शतक जमाकर अपना नाम रिकार्ड बुक में दर्ज कराने के बाद ही उनका बल्‍ला रूका। वैसे उनकी यह गुस्‍ताखी माफी के काबिल है। बल्‍लेबाजी करते वक्‍त उन्‍होंने जो गलतियां की उसकी भरपाई गेंदबाजी विभाग में कीवी बल्‍लेबाजों के लिए खतरा नहीं बनकर कर दी। अब बताईए अतिथि देवों भव: को इससे बेहतर ब्रांड एम्‍बेसेडर क्‍या कोई और मिल सकता है। वाकई में भारत अतुल्‍य है।