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Wednesday, July 14, 2010

द अलकेमिस्‍ट

ब्राजील के जाने माने लेखक पाओलो कोएले की मशूहर कृति है द अलकेमिस्‍ट। इस उपन्‍यास का मुख्‍य किरदार है स्‍पेन के दूरस्‍थ अंचल का गडरिया सेंटियागो है। यह एक ऐसे गड‍रिये की कहानी है जो मुश्किलों को फुटबॉल की तरह ठोकर मारकर दुनिया फतह करने निकला है। द अलकेमिस्‍ट के सेंटियागो की कहानी परी कथा सी लगती है। कहानी होने के बावजूद वह जिंदगी के करीब होते हुए असली सी लगती है। सेंटियागो के मुल्‍क स्‍पेन की वर्ल्‍ड कप फुटबॉल में सफलता भी इस गडरिये से मिलती जुलती है। स्‍पेन की टीम उस घमासान में विजयी हुई है जिस पर छह अरब लोगों की निगाहें लगी हुई थी और 214 मुल्‍क इसे पाने की होड में शामिल थे। आकंडों की कुछ ऐसी जादूगरी द अलकेमिस्‍ट के साथ भी जुडी है। 55 भाषाओं में किताब का अनुवाद किया । 150 से ज्‍यादा देशों में इस किताब ने बिक्री के नये रिकार्ड रचे और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकार्ड में जगह पाई।


स्‍पेन की वर्ल्‍ड कप यात्रा भी द अलकेमिस्‍ट को पढने और इस किताब के वर्ल्‍ड रिकॉर्ड बनाने की यात्रा जैसे ही है। यह किताब 1988 में पहली बार पुर्तगाली भाषा में सामने आई थी। इसी के बाद धीरे धीरे यह किताब पूरी दुनिया पर छा गई थी। सेंटियागो के दुनिया में सामने आने के 22 साल बाद स्‍पेन ने ठोकर से दुनिया को फतह की उसकी कडी भी पुतर्गाल से जुडती थी। पडोसी मुल्‍क के‍ खिलाफ प्री क्‍वार्टर फायनल में 1-0 से मिली जीत के बाद ही स्‍पेन को खिताब के दावेदारों में शुमार किया गया। सेंटियागो की तरह इस वर्ल्‍ड कप में स्‍पेन ने तमाम विपरीत हालात होने के बावजूद हौंसला नहीं खोया। यह टीम एक एक कर सारी बाधाओं दूर करती चली गई। बिलकुल ही कुछ ऐसा जैसे द अलकेमिस्‍ट के हाथ में आने के बाद सारी बाधाओं को दूर कर उसे एक बार में ही पूरा पढ डालने का मन करता है। यह यूरोपीयन टीम शुरूआती झटके के बाद यह टीम खिताब की दौड में टॉप गियर में दौडने लगी थी।

द अलकेमिस्‍ट में पाओलो कोएले लिखते है कि हमें अपने दिमाग से नकारात्मक विचारों की सफाई करते रहना चाहिए। स्‍पेन ने भी वर्ल्‍ड कप में भी यही किया। स्विट्जरलैंड के खिलाफ वर्ल्‍ड कप के अपने पहले ही मुकाबले में स्‍पेन को हार का मुंह देखना पडा था। स्‍पेन की हार को वर्ल्‍ड कप का सबसे बडा उलेटफेर बताया गया। इसके साथ ही फुटबॉल के स्‍वयंभू जानकारों ने वर्ल्‍ड कप से स्‍पेन की छुट्टी लगभग तय कर दी थी। स्‍पेनिश टीम ने ऐसे मोड पर हार के नकारात्‍मक विचारों को पीछे छोड जोरदार तरीके से वापसी की। पहले होंडूरास को शिकस्‍त देकर उम्‍मीदें कायम की और फिर चिली की चुनौती को एक जोरदार मुकाबले में शिकस्‍त देकर इस टीम ने नॉक आउट दौर में अपनी जगह बनाई थी।

सेंटियागो के माध्‍यम से किताब यह संदेश भी देती है जब तकदीर हमारा साथ दे रही हो तो हमें उसका फायदा उठाना चाहिए। हमें भी उसकी उतनी ही मदद करनी चाहिए , जितनी वह हमारी कर रहा है। स्‍पेन की खिताबी जीत में भी इसी संदेश के पीछे छुपी हुई है। इस वर्ल्‍ड कप में पांच बार की चैंपियन ब्राजील और अर्जेंटीना को खिताब का सशक्‍त दावेदार माना जा रहा था। माइकल बलाक की गैरमौजूदगी के बावजूद पहले मुका‍बले में धमाकेदार खेल के बाद जर्मनी की चुनौती को भी गंभीरता से लिया जा रहा था। इन सबके बीच यूरो कप चैंपियन स्‍पेन का दावा थोडा कमजोर नजर आ रहा था। स्‍पेन पर किस्‍मत की ऐसी मेहरबानी रही कि इन तीनों टीमें उसके आडे आए बगैर ही घर लौट गई। वर्ल्‍ड कप 2010 की चैंपियन इस टीम ने तकदीर की मेहरबानी में अपनी मेहनत जोडकर वह कर दिखाया जो अब तक वर्ल्‍ड कप फुटबॉल के इतिहास में नहीं हुआ।

यह वर्ल्‍ड कप मैसी, काका, रोनाल्‍डो और रूनी जैसे बडे खिलाडियों की चमक के साथ शुरू हुआ था। इनकी चकाचौंध के आगे बाकी किसी खिलाडियों पर खेल प्रेमी की न तो निगाहें थी और नहीं उम्‍मीदें जुडी हुई थी। स्‍पेन के खिलाडियों में डेविड विला ही खेल प्रेमियों की फेवरेट लिस्‍ट में शामिल था। बाकी खिलाडियों को बडे बडे दिग्‍गजों की मौजूदगी के चलते नजरअंदाज कर दिया गया था। यहां द अलकेमिस्‍ट के सेंटियागो की बात फिर की जाए तो पता चलता है कि उसकी खुशी का राज़ यह है कि दुनिया की तमाम चमकती चीजों को देखें ज़रूर , लेकिन अपने पास मौजूद चीजों को न भूलें। स्‍पेन भी इन नामी खिलाडियों की चकाचौंध में अपने उम्‍मीद के दिए को जलाए रखा। बजाए दुश्‍मन की ताकत से डरने से अपने हथियारों की धार को यह टीम पैना करती गई। जैसे जैसे द अलकेमिस्‍ट एक मुल्‍क से दूसरे मुल्‍क पहुंची उसकी लोकप्रियता उतनी ही तेजी से बढती गई। स्‍पेन का विजयी रथ भी पुतर्गाल से आगे बढा उसके साथ ही खिताब की दावेदारों में इस टीम का ग्राफ बढता ही गया।

80 साल से स्‍पेन के खिताब का सूखा खत्‍म हुआ तो अंत में भी सेंटियागो की तरह ही रहा। उपन्‍यास के अंत में सेंटियागो को अपने कदमों तले खजाना मिलता है। स्‍पेन को भी जोहांसबर्ग के सॉकर सिटी में पांव से ही सोना हासिल हुआ। आंद्रेस इनिस्ता के लेफ्ट फुटर ने 116 मिनिट में स्‍पेन के इस ख्‍वाब को सच कर दिया जो हर चार साल में टूट कर बिखर जाता था। 13 वर्ल्‍ड कप में शामिल होने के बाद स्‍पेनिश खिलाडी वर्ल्‍ड कप की ट्राफी को चूमने में कामयाब रहे। सेंटियागो पूरी दुनिया का चहेता है और वर्ल्‍ड कप चैंपियन बनने के बाद स्‍पेन भी।

6 comments:

anup kumar dubey said...

book or world cup ki tulnna kafi achhi ki gai hai. lekh main kafi gahrai hai or pardne se lagta hai ki kafi mahnat ki gai hai. lekin eski sabse badi karjori yah hai ki jine yah kitab na padi ho use apka lek pirbhiwit nahi garaga. es kitab ki jagah app agar kisi hind grinthh ya bharat main charchit kitab lete to yah hame jada kari lagta. no dout artical is very striking.

nidhi said...

It is really motivating article...
I have not read The Alchaemist but still the message is clear it is really effective....

Anonymous said...

Jinhone ye kitab padi wo to keval kahani ki fantasy me hi kho gaye honge, kai log uske uddeshya ko bhul gaye honge, lekin is article me uske excerpts ko kafi prabhavshaali roop me prastut kiya hai.
Good Job

Unknown said...

mast hai,

Richa Sakalley said...

well compared by you. Nice writing...well done!!!

श्रुति अग्रवाल said...

जानते हो मनोज अभी मेरे हाथों में जनाब पाओलो की "ब्रीडा" है। अलकेमिस्ट की जोड़ की कोई किताब है ही नहीं। वैसे अक्टोपस बाबा की खबरों को सुनते-सुनते बोरिय़त होने लगी है। स्पेन की जीत काआकलन अलकेमिस्ट के नायक के साथ बेहद सुखद लगा।

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