Pages

Friday, December 24, 2010

मैं गोपीचंद हूं

मैं गोपीचंद हूं। खेलमंत्री एम एस गिल से मुलाकात करते वक्‍त पुलैला गोपीचंद को कुछ इसी तरह अपना परिचय देना पड़ा था। यह वाकया दो साल पुराना है जब गोपीचंद अपनी शिष्‍या और स्‍टार शटलर साइना नेहवाल के साथ खेल मंत्री एम एस गिल से मुलाकात करने पहुंचे थे। खेलमंत्री के सामने पहचान संकट होने के बावजूद गोपीचंद पर इसका जरा सा भी असर नहीं दिखा था। दो साल बाद अब एम एस गिल का बतौर खेलमंत्री कार्यकाल सवालों के घेरे में है तो वहीं साइना दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी बनने की दहलीज पर खड़ी है। चीन की दीवार जिसमें साइना ने पहले सेंध लगाई थी अब धराशायी हो चुकी है। इन सबके बीच नहीं बदला तो गोपीचंद का अंदाज। वह अब भी चिरपरिचित मुस्‍कान लिए शांत, सहज और सरल है। चीन की दीवार को लांघती अपनी शिष्‍या की सफलता में वह किसी शोरशराबे के बगैर परछाई की तरह हर पल मौजूद है।

साइना की सफलता के पीछे गोपीचंद के समर्पण को देख मोहम्‍मद अली का कथन याद आता है कि कोई विजेता उस समय विजेता नहीं बनते जब वे किसी प्रतियोगिता को जीतते हैं। विजेता तो वे उन घंटों, सप्‍ताहों, महीनों और वर्षों में बनते हैं जब वे इसकी तैयारी कर रहे होते हैं। साइना को आज दुनिया विजेता के रूप में देख रही है, इसके पीछे खुद साइना की मेहनत के साथ साथ गोपीचंद का समर्पण और बरसों की मेहनत छुपी हुई है। साइना की सफलता गोपीचंद के बगैर अधूरी है।


पुलैला गोपीचंद साइना की सफलताओं की अनकही गाथा है। हर हाल में संघर्ष, आखिर तक हार न मानने और जीत की एक अटूट जिद कुछ ऐसे पैगाम है जिनके चलते साइना सहित भारतीय बैडमिंटन आज सफलता के नए मुकाम पर है। ये बात अलहदा है कि एक खिलाड़ी की जीत में उसके हुनर और दमखम का खासा जोर रहता है लेकिन इसके अलावा उसे हर हाल में जीतने और हारी बाजी को जीत में बदलने के कुछ ऐसे गुरुमंत्र होते हैं जो एक कोच ही सीखा सकता है। गोपीचंद ने अपने , पके बच्चों को यही सिखाया है। सही मायनों में गोपीचंद एक कुशल शिल्पी हैं जिनकी कलाकृति साइना सहित भारतीय बैडमिंटन में झलकती है।

गोपीचंद के उदय के पहले भारतीय बैडमिंटन का जिक्र प्रकाश पादुकोण से शुरू होकर उन्‍हीं पर खत्‍म हो जाता था। प्रकाश पादुकोण ने भारतीय बैडमिंटन को पहचान दी तो पुलैला ने इस खेल में भारत के अटूट संघर्ष की कहानी लिखी है। प्रकाश पादुकोण और गोपीचंद के ऑल इंग्‍लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने में अंतर शायद ये रहा कि जहां प्रकाश पादुकोण की कहानी उनसे शुरु होकर वहीं तक सिमट कर रह गई वहीं गोपींचद ने इस जीत को निरंतरता में डालने की आदत डाली।


पुलैला ने न केवल अपनी सफलता को खुद तक सीमित रखा बल्कि उसे एक मिसाल के तौर पर आने वाली पीढियों के सामने रखा और शायद यही कारण है कि आज बैडमिंटन में भारत का एक नाम है। अफसोस की बात ये है कि भारत के खेल संघ यहां तक कि खेल मंत्री भी उनकी सफलताओं से गौरवान्वित नहीं होते, क्योंकि अगर होते तो शायद पुलैला को यूं अपना परिचय देने की जरूरत न होती। ये वाकया दो साल पुराना है इस घटना के बाद आज भारतीय बैडमिंटन एक नए मुकाम पर है। साइना नेहवाल एंड कंपनी दुनिया में अपनी सफलताओं का परचम लहरा रही हैं तो उनके साथी डबल्स और मिक्सड डबल्स में धमाका किए हुए हैं। इन बातों से इतर गोपीचंद अपना काम जारी रखे हैं।

खुशी की बात है कि भारत सरकार ने अपने इस स्टार खिलाड़ी की सफलता के महत्व को पहचाना और उसे सम्मानों से नवाजा है। गोपीचंद एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें अर्जुन अवार्ड, द्रोणाचार्य अवार्ड, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला है। सम्मानों की लंबी फेहरिस्त के बीच पुलैला ने अपने व्यकितगत आदर्शों को बनाए रखा। मिडिल क्‍लास से संबंध रखने वाले पुलैला ने कोला जैसी कंपनी का विज्ञापन ठुकरा दिया क्योंकि ये पेय उनके मापदंडों पर खरा नहीं उतरता। उन्‍हें ऐतराज था कि जिस शीतल पेय का वह सेवन नहीं करते उसका प्रचार प्रसार वो कैसे कर सकते हैं। इतना ही नहीं हैदराबाद में अपनी एकेडमी के लिए जब धन की कमी आड़े आई तो उन्‍होंने अपना घर गिरवी रखने से भी परहेज नहीं किया। विपरीत परिस्थितियों में सफलता हासिल करने वाले गोपीचंद को फाइटर प्लेयर और एक आदर्श कोच के तौर पर सलाम।