मैं कर सकता हूं नहीं यह मेरा घमंड नहीं विश्वास है। विश्वास और घमंड में बहुत कम फर्क है। मैं कर सकता हूं, यह मेरा विश्वास है। सिर्फ मैं ही कर सकता हूं यह मेरा घमंड है।
गजनी फिल्म के हैविवेट सुपररिच मालिक संजय सिंघानिया का यह डॉयलाग श्रीलंका के जादुई गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन पर सौ फीसदी खरा उतरा है। 18 साल का लंबा टेस्ट कैरियर 800 विकेट की बुलंदियों को केवल इसी थीम पर छू पाया कि मैं कर सकता हूं यह मेरा विश्वास है। आत्मविश्वास, चुनौतियों से निपटना, खुद के सामने बडा लक्ष्य रख उसे हासिल करना और टीम भावना जैसे शब्दों से जादुई ऑफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन के कैरियर का खाका खींचा जा सकता है। उनका खेल कैरियर मनोबल बढाने वाली किताब को पढने जैसा है।
बिस्किट बनाने वाले परिवार में जन्में मुरलीधरन कभी यह मुकाम पाएंगे किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा। मुरली को बचपन से ही यह अच्छे से मालूम था कि बिस्किट तभी कुरकुरा और स्वादिष्ट तैयार होता है जब वह भट्टी की तेज आंच में तपकर निकलें। बॉलिंग एक्शन और शुरूआती असफलताओं के बाद आलोचकों की भट्टी में उनकी खूब सिकाई हुई। आलोचनाओं की आंच से डरे बगैर मुरली की गेंदबाजी निखरती गई। बालिंग एक्शन पर सवाल उठाकर उनके कैरियर को खत्म करने की कोशिश भी की गई। मुरलीधरन हर चुनौती से अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ विजेता की तरह निकले। 18 साल बाद जब मुरलीधरन ने टेस्ट क्रिकेट को विदा कहां तो वह उस मुकाम पर खडे है जहां कोई भी गेंदबाज पहुंच नहीं पाया है।
मुरलीधरन के पास 800 विकेट के शिखर को छूने के लिए भारत के खिलाफ तीन टेस्ट मैचों की श्रृंखला थी। दुनिया के इस सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज ने केवल एक टेस्ट के बाद संन्यास का ऐलान कर सबको चौंका दिया था, क्योंकि उन्हें खुद पर विश्वास था कि वह एक ही टेस्ट में आठ विकेट लेने का माद्दा रखते है। वह भी दुनिया की सर्वेश्रेष्ठ बैटिंग लाइन के खिलाफ जिसमें मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, द वॉल राहुल द्रविड, नजफगढ का सुल्तान वीरेन्द्र सहवाग और वेरी वेरी स्पेशल लक्ष्मण हो। मुरलीधरन ने अपने पूरे कैरियर में खुद के सामने मुश्किल लक्ष्य रखे है और उन्हें हासिल करने का जज्बां भी दिखाया है। यही वजह है कि इस ग्रह पर 800 टेस्ट विकेट लेने वाले वह पहले मानव बन गए।
मुरलीधरन केवल श्रीलंका में नहीं भारत में भी खासे लोकप्रिय है। दोनों मुल्कों के बीच रिश्तें त्रेता युग से रहे है। 20 वीं शताब्दी में रेडियो सिलोन और फिर लिट्टे के खिलाफ भारतीय शांति सेना के अभियान ने दोनों देशों को फिर जोडा। राजीव गांधी की हत्या के बाद श्रीलंकाई तमिलों के खिलाफ नाराजगी भी हुई, लेकिन 21 वी सदी में श्रीलंकाई तमिल खिलाडी मुथैया मुरलीधरन भारत में सबसे चहेते विदेशी क्रिकेटर हो गए। चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेलने वाले इस खिलाडी ने रेडियो सिलोन जैसी ही लोकप्रियता भारत में हासिल की। यही वजह है कि भारतीय क्रिकेट प्रेमी चाहते थे कि मुरली 800 विकेट हासिल करें लेकिन ख्वाहिश बस इतनी सी थी कि टेस्ट में भारत को हार का मुंह न देखना पडे।
दुनिया में सबसे ज्यादा टेस्ट और वन डे रन बनाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की तरह मुरलीधरन भी तेज गेंदबाज बनना चाहते थे। सचिन ने गेंद छोड़ बल्ला थामा तो मुरलीधरन ने गति को छोड़कर फिरकी को अपनाया। दोनों का यह निर्णय रिकार्ड बुक के वजन को बढाने वाला साबित हुआ। खास बात यह है कि मुरली का इंटरनेशनल कैरियर में आगाज धमाकेदार नहीं हुआ था। इसके बाद भी मुरली ने हिम्मत नहीं हारी। कड़ी मेहनत और लड़ाकू क्षमता की बदौलत वह बरसों से श्रीलंका टीम के आधारस्तंभ बने रहें। मुरली केवल एक अच्छे क्रिकेटर नहीं बल्कि इंसान भी है। सुनामी ने जब श्रीलंका को बर्बाद कर दिया था उस वक्त उन्होंने सुनामी पीडितों के पुनर्वास में खासा काम किया था। श्रीलंकाई क्रिकेट प्रेमी मुरली को उसी तरह से पूजता है जिस तरह भारत में सचिन तेंदुलकर को भगवान माना जाता है।
क्रिकेट की दुनिया में अब तक की सबसे यादगार विदाई मुरलीधरन की ही रही है। डॉन ब्रैडमेन अपनी आखरी पारी में चार रन बनाने से चूक गए थे तो लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर भी आखरी पारी में चार रनों से शतक से चूक गए थे। मुरली इन सबसे परे अपने टेस्ट कैरियर की आखरी गेंद पर न केवल विकेट लेने में कामयाब रहे बल्कि उन्होंने अपनी टीम को जीत दिलाने में भी अहम रोल अदा किया। कहां ये जाता है कि खेल और खिलाडी के मुकाबले में अंत में जीत खेल की ही होती है लेकिन जुझारू मुरलीधरन ने जब संन्यास लिया तो न तो क्रिकेट जीता और नहीं खिलाडी हारा। बल्कि मुकाबला बराबरी पर रहा।
विदाई या आधुनिक भाषा में कहे फेयरवेल। एक ऐसा मौका होता है जब विदा होते व्यक्ति की स्मृतियों में ताउम्र ताजा रहे ऐसा गिफ्ट दिया जाता है। मुरली ने यह तोहफा 800 विकेट के रूप में खुद ही चुन लिया। इसके साथ ही भारत के खिलाफ जीत हासिल कर उन्होंने उल्टा अपनी टीम को रिटर्न गिफ्ट ही दिया। हर दिल अजीज और टीम में सबसे लोकप्रिय मुरलीधरन की कमी श्रीलंकाई क्रिकेट को हर वक्त खलेगी। मुरली जैसे खिलाडी सदियों में जन्म लेते है। मुरली जैसा कोई नहीं। अलविदा मुरली।